Menu
blogid : 110 postid : 7

१५ अगस्त पर शायरों और कवियों की नजर….दूसरी किश्त

pattarkarita
pattarkarita
  • 4 Posts
  • 3 Comments

१५ अगस्त पर शायरों और कवियों की नजर….पहली किश्त उम्मीद है आपको पसंद आई है। आज दूसरी किश्त जारी कर रहा हूं..आशा है यह भी आपको पसंद आएगी….

१९५७ में एक फिल्म आई थी गुरुदत्त की प्यासा, जिसमें साहिर लुधियानवी ने दो गीत लिखे थे…ये गीत इसी कथित आजादी की पोल खोलते हुए नजर आते हैं…और आज कहीं ज्यादा मौजूं हैं…..

1-

ये कूचे ये नीलामघर दिलक़शी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के
कहां हैं कहां हैं मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

ये पुरपेंच गलियां ये बेख़्वाब बाज़ार
ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार
ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

तअफ्फुन से पुरनीम रौशन ये गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियां
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

वो उजले दरीचों में पायल की छनछन
तऩफ्फ़ुस की उलझन पे तबले की धनधन
ये बेरूह कमरों में खांसी की धनधन
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

ये गूंजे हुए कहकहे रास्तों पर
ये चारों तरफ भीड़ सी खिड़कियों पर
ये आवाज़ें खिंचते हुए आंचलों पर
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे
ये बेबाक़ नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

ये भूखी निगाहें हसीनों की जानिब
ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब
लपकते हुए पांव ज़ीनों की जानिब
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

यहां पीर भी आ चुके हैं जवां भी
तनूमंद बेटे भी अब्बा मियां भी
ये बीवी भी है और बहन भी है मां भी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

ज़रा मुल्क़ के रहबरों को बुलाओ
ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ को लाओ
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

2-

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनियां
ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनियां
ये दौलत के भूखे रवाज़ों की दुनियां
ये दुनियां अगर मिल भी जाए तो क्या है

हर एक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी
निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनियां है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

जहां एक खिलौना है, इंसा की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहां पर तो जीवन से मौत सस्ती
ये दुनियां अगर मिल भी जाए तो क्या है

जवानी भटकती है बदकार बनकर
जवां जिस्म सजतें है बाजार बनकर
यहां प्यार होता है व्यापार बनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये दुनियां जहां आदमी कुछ नहीं है
वफा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है
यहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

जला दो इसे फूंक डालो ये दुनियां
मेरे सामने से हटा लो ये दुनियां
ये दुनियां अगर मिल भी जाए तो क्या है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh